यह कहानी बहुत पुरानी है। एक बार एक नगर में देवशर्मा नाम का एक बनिया रहा करता था। एक बार उसे व्यापार में भारी नुकसान हो जाता है। पैसे कमाने के लिए वह परदेश जाने का ठाना और वह एक दिन परदेश के लिए निकल पड़ता है। उसके पास एक पुराना लोहे का भारी तराजू था।
वह एक महाजन के पास जाकर उससे कहता है कि आप मेरा यह तराजू गिरवी रखकर मुझे कुछ पैसे दे सकते है। जिसपर महाजन उसे कुछ पैसे दे देता है। पैसे कमाकर वापस आने के बाद देवशर्मा उस महाजन के पास गया और उधार पैसा लौटाकर अपना तराजू मांगता है।
महाजन बहुत ही लालची व्यक्ति था। वह तराजू वापस नहीं करना चाहता था इसलिए उसने कहा कि तराजू को तो चूहो ने मिलकर खा गया। बनिया समझ गया कि महाजन उसे तराजू नहीं देना चाहता है।
जैसे को तैसा : महाजन ने कहा तराजू को चूहो ने खा लिया
कुछ देर सोचने के बाद देवशर्मा ने कहा कि कोई बात नहीं चूहों ने खा लिया तो यह उनका दोष है आपका नहीं। मैं नदी पार स्नान के लिए जा रहा हूं। तुम अपने पुत्र को मेरे साथ भेज दो वह भी नहा आएगा। महाजन ने अपने पुत्र को बनिया के साथ नदी में स्नान करने भेज देता हैं।
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नदी के पास ही एक गुफा में देवशर्मा ने महाजन के पुत्र को बंद कर दिया। देवशर्मा ने वापस जब महाजन के घर पहुंचा तो महाजन ने अपने पुत्र के बारे में उससे पूछा कि वह कहां है। देवशर्मा ने कहा उसे तो चील उठाकर ले गया।
जैसे को तैसा : महाजन ने बनिया को लौटाया तराजू
महाजन ने कहा कि अरे भाई चील कभी इतने बड़े बच्चे को उठाकर ले जा सकता है क्या। महाजन ने कहा कि तुम मेरा पुत्र को दो नही तो मैं तुम्हें धर्म अधिकारी के पास ले जाऊंगा। ठीक है चलो धर्म अधिकारी के पास। देवशर्मा ने कहा मैं उन्हें बताऊंगा कि चूहे अगर लोहे का तराजू खा सकता हैं तो चील बच्चे को क्यों नहीं ले जा सकता है।
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महाजन को अपनी भूल का एहसास हो गया। उसने कहा मित्र क्षमा कर दो मुझे मैंने झूठ कहा तुमसेा। मैं तराजू देता हूं और तुम मेरा पुत्र लौटा दो। बनिया ने पुत्र लौटा दिया और महाजन ने उसे तराजू। कुछ देर बार बनिया वहां से तराजू लेकर चला गया।
कहानी से सीख (Moral of The Stroy) :- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि जैसा करता है उसे वैसा ही भोगना पड़ता है। इसलिए जीवन में हमे किसी से छल नहीं करनी चाहिए।
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