एक छोटे से गाँव में श्यामू नाम का एक मूर्तिकार रहता था। वह मूर्तिकला के प्रति अधिक रूचि रखता था। वे अपना सारा जीवन मूर्तियों को बनाने में लगा दिया। उसकी बनाई मूर्तियों को जो देखता वह उसकी कला का बहुत प्रशंसा करता था। उसकी कला की चर्चा गांव ही नहीं बल्कि दूर दूर तक फैलने लगा।
कई नगरो में भी उसकी कला की प्रशंसा की जाने लगी। ऐसी स्थिति में जैसा सामान्यतः होता है वैसे ही मूर्तिकार के साथ भी हुआ। उसके अंदर भी अहंकार की भावना उत्पन्न होने लगी। वह अपने को सर्श्रेष्ठ मूर्तिकार मानने लगा था।
अहंकार का फल : मृत्यु से बचने के लिए मूर्तिकार ने हूबहू अपनी तरह बनाई दस मूर्तियां
श्यामू की उम्र बढ़ती गई। उसका अंत का समय निकट आने लगा, तो वह मृत्यु से बचने की योजना साोचने लगा। वह किसी भी तरह स्वयं को यमदूत की दृष्टि से बचाना चाहता था, ताकि उसे प्राण बच सके। अंत में उसे एक योजना सूझ ही गई।
उसने अपनी बेमिसाल मूर्तिकला का प्रदर्शन करते हुए दस मूर्तियों का निर्माण किया। वे सभी मूर्तियाँ दिखने में हूबहू उसके तरह की लग रही थी। बनने के बाद सभी मूर्तियाँ इतनी जीवंत प्रतीत होने लगी कि मूर्तियों और मूर्तिकार में कोई अंतर ही नहीं दिख रही थी। मूर्तिकार श्यामू उन मूर्तियों के बीच जाकर बैठ गया। योजना अनुसार यमदूत का उसे इन मूर्तियों के मध्य पहचान पाना असंभव था।
मूर्तिकार को पहचान नहीं सके यमदूत
उसकी योजना कारगर भी सिद्ध हुई। जब यमदूत उसके प्राण हरने आया, तो ग्यारह एक तरीके की मूर्तियों को देख चकित रह गया। वे उन मूर्तियों में अंतर कर पाने में असमर्थ थे, परन्तु उन्हें ज्ञात था कि इन्हीं मूर्तियों के मध्य मूर्तिकार छुपा बैठा है। मूर्तिकार के प्राण हरने के लिए उसकी पहचान आवश्यक थी, उसके प्राण न हर पाने का अर्थ था प्रकृति के नियम के विरूद्ध जाना।
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प्रकृति के नियम के अनुसार मूर्तिकार का अंत समय आ चुका था। मूर्तिकार की पहचान करने के लिए यमदूत हर मूर्ति को तोड़ कर देख सकता था, परन्तु वे कला का अपमान नहीं करना चाहते थे। इसलिए इस समस्या का उसने एक अलग ही तोड़ निकाला।
यमराज ने अपनी योजना से हर लिए मूर्तिकार के प्राण
यमराज को उस मूर्तिकार के अहंकार का समझ था। उसके अहंकार पर चोट करते हुए वह बोला वास्तव में सब मूर्तियाँ कलात्मकतता और सौंदर्य अद्भुत है, परन्तु मूर्तिकार एक गलती कर बैठा। यदि वे मेरे सामने होता तो मैं उसे उसकी गलती को बता पाता।
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अपनी मूर्ति में त्रुटी की बात सुन अहंकारी मूर्तिकार का अहंकार जाग गया। उससे रहा नहीं गया और झट से अपने स्थान से उठ बैठा और यमदूत से बोला। भगवन असंभव है मेरी बनाई मूर्तियाँ में त्रुटी नही हो सकती। यमदूत की योजना काम कर गई उसने मूर्तिकार को पकड़ लिया और कहा बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करती और तुम बोल पड़े।
यही तुम्हारी गलती है कि अपने अहंकार पर तुम्हारा कोई बस नही है। जिसके बाद यमदूत ने मूर्तिकार के प्राण तुरंत हर कर यमलोक वापस लौट जाते है।
कहानी से सीख (Moral of The Story) :- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि अहंकार विनाश का कारण होता है। इसलिए हमे अपने जीवन में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। खूद पर अहंकार हावी होना प्रलय की ओर ले जाना होता है।
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