सदियो पुरानी बात है एक जंगल में हरे भरे पेड़ पर दो गौरेया रहते थे। पेड़ पर घोंसला बनाकर दोनों खुशी से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। कुछ समय बाद सर्दियों का मौसम आ गया। इस बार कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। एक दिन कुछ बंदर ठंड ठिठुरते हुए उस पेड़ के नीचे पहुंचा।
कड़ाके की ठंड व शीतलहरी से सारे बंदर कांप रहे थे। पेड़ के नीचे बैठने के बाद बंदर आपस में सभी बात करने लगे कि काश कहीं से आग सेंकने को मिलती तो ठंड से कुछ राहत मिलती। इसी बीच एक बंदर की नजर पास पड़ी सूखी पत्तियों पर पड़ी। उसने दूसरे बंदरों से कहा चलो इन सूखी पत्तियों को इकट्ठा करके जलाते हैं। बंदरों ने पत्तियों को एक जगह इकट्ठा किया और जलाने का प्रयास करने लगे।
बंदर और गौरैया की कहानी : गौरैया की बात सुन चिढ़े उठे सारे बंदर
पेड़ पर बैठी गौरैया सारी चीजे देख रही थी। यह देख गौरेया से रहा नहीं गया और वे बंदरों से बोल पड़ी तुम लोग देखने में तो आदमियों की तरह लग रहे हो, हाथ-पैर भी है, तुम अपना घर बनाकर क्यों नहीं रहते। गौरेया की बात सुनकर ठंड से ठिठुर रहे बंदर चिढ़ गए और बोला तुम अपना काम करो।
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इतना कहने के बाद बंदर फिर आग जलाने के बारे में सोचने लगे और अलग-अलग तरीके अपनाने लगे। इतने में बंदरों की नजर एक जुगनू पर पड़ी। वे लोग इसे देखकर चिल्लाने लगे और कहा कि देखो ऊपर हवा में चिंगारी है इसे पकड़कर आग जलाते हैं।
यह सुनते ही सारे बंदर उसे पकड़ने के लिए कई तरीके अपनाने लगे। गोरैया फिर बोल पड़ी यह जुगनू है, इससे आग नहीं सुलगेगी। बंदर भाई तुम लोग दो पत्थरों को घिसकर आग जला सकते हो।
बंदर और गौरैया की कहानी : गुस्से में बंदर ने गौरैया के घोंसले उजाड़े
बंदरों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। कई कोशिश के बाद उन्होंने जुगनू को पकड़ लिया। फिर उससे आग जलाने की कोशिश करने लगे, पर वो इस काम में कामयाब नहीं हो पाए और जुगनू उड़ गई। इससे बंदर निराश हो गए। इतने में फिर से गौरेया बोल पड़ी आप लोग मेरी बात मानिए पत्थर रगड़कर आप आग जला सकते हैं।
इतनी सी बात सुनकर एक बंदर को बहुत जोर से गुस्सा आया और उसने पेड़ पर चढ़कर गौरैया के घोंसले को उजाड़ दिया। गौरैया बहुत दुखी हो गई और रोने लगी। इसके बाद गौरैया का जोड़ा उस पेड़ से कहीं और चली गई।
कहानी से सीख (Moral of The Story) :- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि जरूरी नहीं कि हर किसी को ज्ञान या उपदेश दिया जाए। उपदेश उसी को दिया जाना चाहिए जो उसकी बातों को समझ सके। बेवकूफो को उपदेश देना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। इससे हमे खूद का ही नुकसान होता है।
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