एक समय की बात है एक गांव में दो पड़ोसी रहा करते थे। एक का नाम था मोहन और दूसरे का नाम था सोहन। दोनों माली थे। दोनों के पास अपने-अपने बागान थे और वह उसमें तरह-तरह के फलों के पौधे लगाए हुए थे। यही बागान उनकी जीवन के भरण पोषण का साधन था।
उनमें से एक पड़ोसी मोहन बहुत सख्त था और अपने पौधों की जरूरत से ज्यादा देखभाल करता था। उसे लगता था कि पौधों की अगर ठीक से देखभाल नहीं की गई तो वह नष्ट हो सकते हैं। पर दूसरा पड़ोसी सोहन पौधों को प्राकृतिक रूप से विकसित होने देने पर विश्वास करता था। वह पौधों की उतनी ही देखभाल करता था जितने कि उन्हें आवश्यकता थी, लेकिन वह अपने पौधों के तने और टहनियों को काट छांट न करके पौधों को अपनी मनमर्जी से बढ़ने देने के लिए छोड़ देता था। इससे वह स्वाभाविक रूप से विकसित होते थे।
दो माली : मोहन के बागान में लगे पौधे तूफान में हुए बर्बाद
एक दिन शाम में बहुत तेज तूफान आया। भारी बारिश भी हुई। इस भीषण तूफान ने कई पौधों को नष्ट कर दिया। अगली सुबह जब मोहन जो सख्त था उठा और अपने बगीचे में गया तो देखा की तो उनके सारे पौधे उखड़ गए हैं और बर्बाद हो गए हैं। वहीं जब दूसरा पड़ोसी सोहन उठ तो उसने देखा कि उसके पौधे अभी भी मिट्टी में मजबूती से लगे हुए हैं।
इतने तूफान के बावजूद भी उसके पौधे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। दूसरे पड़ोसी के पौधे खुद ही चीजों का प्रबंध करना सीख गए थे। इसलिए उसने अपना काम किया और गहरी जड़े बनाकर मिट्टी में अपने लिए जगह बनाई। इस प्रकार यह तूफान में भी मजबूती से खड़ा रहा। जबकि मोहन ने अपने पौधों की जरूरत से ज्यादा ख्याल रखा था। वे पौधों को समय-समय पर काट छांट किया करता था। लेकिन शायद वह सीखना भूल गया था कि बुरे समय में खुद का ख्याल कैसे रखते हैं। इसलिए उनके पौधे तूफान में नष्ट हो गए।
कहानी से सीख (Moral of The Story) :- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अभी या बाद में आपको खुद से ही सब कुछ करना होता है। जब तक माता-पिता अत्याधिक सख्त होना बंद नहीं करते तब तक कोई अपनी समझ के अनुरूप काम करना नहीं सीख पाता।
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